ना जाने |
ना जाने कब भटक चली थी अपने सफर से
कब इस बेपरवाह दुनिया की परवाह करने लगी थी
फिर लगा शायद पसंद करने लगी हूँ किसी को
तब भी कुछ अजीब सी उलझन थी दिल में ना जाने किस बात की।
पर फिर ना जाने कब टकरा गई तुमसे
और याद आया कि शायद भूल चली थी
मैं तुम्हें इस जिंदगी की दौड़ में
ना जाने कब प्यार हो गया था इस राह से।
दुनिया ने तो जैसे पागल समझ लिया था मुझे
पर कैसे समझाउ लोगों को,
प्यार सिर्फ इन्सान से नहीं अक्सर हो जाता सपनो की राहों से
ना जाने कब ये दुनिया जिद्दी समझने लगी थी मुझे।
पर शायद असर है ये तेरा की लोगों का जिद्दी कहना भी अब आफत सा नहीं लगता
क्योंकि नाज है मुझे अपनी इस अदा पर
अजीब सी खुशी है दिल में ना जाने किस बात की
शायद लौट आई हूँ इस सफर में शायद इस बात की।
BY- Deepika Chauhan
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