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Showing posts with the label Hindi poetry

Dare to Dream | सपनों का भारत | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

“जो सोचा था कभी, अब वो हकीकत है”  कभी था एक सपना, किताबों में जो लिखा था, सशक्त, समृद्ध होगा एक सपना अनकहा था। जो देख रहे हैं हम अपनी आँखों के सामने, वो सपना नहीं, वो तब हकीकत की नीव बना था। ना भीड़ है विदेशों की उड़ानों में, ना बेचैनी है पहचान के सवालों में। अब बच्चों का सपना यहीं कुछ बनना है, अब वो बात नहीं विदेशों में पढ़ने जाने में । सड़कों पर दौड़ते हैं अब Hyperloop के रथ, हर गाँव है डिजिटल और साफ़ सुथरा पथ। किसान का बेटा coder, और coder अब किसान, गाँव और मिट्टी का अब साथी बना विज्ञान। AI अब करता सेवा है, और मानव ही राजा है, ड्रोन लाते हैं दवाइयाँ, और चाँद अब खटखटाता दरवाज़ा है। ISRO की उड़ानें अब हौसले मजबूत कर जाती है - ज़मीन या अंतरिक्ष हर तरफ़ अब गर्व से तिरंगा लहराती है। हमारा सैनिक अब exo-suit में रखवाली करता  सीमा पर नहीं - साइबर फ्रंट पर भी देश की ढाल बनता। शक्ति अब केवल तोप और हथियारों की बात नहीं चिप्स, सैटेलाइट और कोड  भी देश की गरिमा बढ़ाता है। अब आस्था की धुन और लैब की मशीनें, एक ही सुर में गाते हैं, अब धर्म और विज्ञान एक ही ज्ञान बताते हैं - शक्ति, श्रद्...

Akhir Kyu Hai Itna Pareshan Aadmi | आखिर क्यों है इतना परेशान आदमी | By- Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

💭💭 आखिर क्यों है इतना परेशान आदमी करता सब पर है बस एहसान आदमी कैसे भुला है गीता कुरान आदमी बनता है खुद से क्यों अंजान आदमी। एक अजनबी को है देना सहारा उसे खुद को देखता है क्यों परेशान आदमी। एक तरफ है उम्मीदें हज़ारों से जो खुद न करता कभी जैसा काम आदमी। आज सोचा बहुत कुछ न आया समझ क्यू है बनता सच से अंजान आदमी। अगर सहारा बने तो साथ पर्वत चढ़े पर खुशी देख है क्यों हैरान आदमी। किसी की लाठी, किसी का नयनतारा बने बनता खुद में है खुद भगवान आदमी। जो मिलेगा यहां सब यही रहना है करता क्यों नहीं है अच्छे काम आदमी। ✍  अखिलेश द्विवेदी Folks, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

Har Shaam Gujar Jaaye Bas Itna Tumse Milna hai | हर शाम गुजर जाए बस इतना तुमसे मिलना है | By- Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

हर शाम गुजर जाए बस इतना तुमसे मिलना है  हो ऐसा भी पल जब तुम हो मेरे पास चारो और हो खामोशी बस सुन लें मन की बात। जो शोर तुम्हारे मन में है वो मुझको सुनना है हर शाम गुजर जाए बस इतना तुमसे मिलना है। एक गरम चाय की प्याली हो या हो ठंडे शरबत का गिलास हम बोले भी ना और बातें हों बस रहना इतने पास। जीवन की काली रातों में संग हाथ पकड़ कर चलना है हर शाम गुजर जाए बस इतना तुमसे मिलना है। पतझड़ के वीराने में ना छूटे अपना साथ सावन के तूफ़ानो में एक छतरी में हो हम साथ। सर्दी की ओस की बुंदो पर साथ तुम्हारे चलना है हर शाम गुजर जाए बस इतना तुमसे मिलना है। जो साथ हो तुम मेरे ये जीवन है एक प्यारा गीत बन जाओ मेरे सुख दुख के साथी मेरे सच्चे मीत। हो साथ अगर तुम तो मुझे दरिया में भी उतरना है हर शाम गुजर जाए बस इतना तुमसे मिलना है। गांव के बागीचे में तुम्हें कोयल का गीत सुनाना है चिड़िया जब लोरी गाए उस धुन में तुम्हें सुलाना है। मौसम कोई भी आए बस साथ तुम्हारे हंसना है हर शाम गुजर जाए बस इतना तुमसे मिलना है। ✍  अखिलेश द्विवेदी Friends, if you like the post, comment below and do share your respon...

Agar Ab Chaand Nikla To - अगर अब चांद निकला तो | Think Tank Akhil

अगर अब चांद निकला तो अगर अब चांद निकला तो उससे पूछ लेंगे हम ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने। संवारा है कभी उसने, निखारा है कभी उसने ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने। उसकी झील सी आंखों में डूब जाते हैं हम समुन्दर की गहराई से तराशा है कहीं उसने। जो खोले रेशमी जुल्फें तो शाम ढलती है नई दुनिया में सूरज को पुकारा है कहीं उसने। नदियों सी बलखाती अदाकारी है उसमे हिरनी सा चलना सिखाया है कहीं उसने। अगर अब चांद निकला तो उससे पूछ लेंगे हम ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने।                                                                       ✍  अखिलेश द्विवेदी Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

चैन से सोना चाहता हूं- Chain se Sona Chahta hoon | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

सोना चाहता हूं यह दरवाज़े पर कोई पहरा लगा दो  खुद में खोना चाहता हूं मैं। बंद कर दो सारी खिड़कियां मेरे घर की की अब मैं चैन से सोना चाहता हूं। उसकी ज़रूरत मुझे अभी बहुत है अब उससे दूर होना चाहता हूं। अब कोई दिया रोशन ना करना अंधेरे में खोना चाहता हूं मैं। कुछ नए गम दे जा इन सूखी आंखों को मैं फिर से पलकें भिगोना चाहता हूं। था जिस पतवार का सहारा उसे तोड़ दिया अब यह दरिया सुखाना चाहता हूं। ✍  अखिलेश द्विवेदी Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

पहचान | Pehchan by Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

हर तरफ धुंधला-धुंधला सा दिख रहा है जैसे कोई आंसुओं से गया है मिलने। गुमान हमको किस बात का है मनो यह दुनिया ही रची है हमने। वो एक शख्स जो आँखों में मेरी दिखता है तस्वीर उसकी ही दिल में रखी है हमने। हर शख्स सा दिखता है एक शख्स मुझमें खुद में  सबकी परछाईं सी रखी है  हमने। सपनों ने कभी चैन से सोने ना दिया जाग जाग कर रातें गुजारी है हमने। रो रही है मौत जिसके मरने पर एक ऐसी पहचान रची है हमने। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

क्या जाने? Kya Jane? | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

जो नदी किनारे आया ही नहीं वो दरिया की गहराई क्या जाने। जो झूठ के बल पर जीत गया भला वो सच्चाई क्या जाने। जिसे प्यार कभी हुआ ही नहीं वो दर्द तन्हाई का क्या जाने। जो खुद के पास रहा ही नहीं वो तुमसे बिछड़कर क्या जाने। जो धूप में कभी जला ही नहीं वो छाँव की कीमत क्या जाने। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

लिखता रहूं | Likhta Rahu | Emotional-Experience | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

लिखता रहूं   मन में आते हैं ख्याल कई सारे कुछ बुरे, कुछ होते हैं प्यारे। सोचता हूँ कैसे याद रखूं सबको लिखता रहूं बस कलम के सहारे। लिखता रहूं वो हर बात, हर जज़्बात वो दिन की कहानी, वो रात की मनमानी। कैसी होती है सुबह, और शाम कितनी सुहानी कभी बेमौसम बारिश तो कभी सूरज की नादानी। लिखता रहूं लोगों का आना और जाना कहते हैं अपना लेकिन करके बेगाना। लोगों की सबसे ज्यादा चुभने वाली बातें और फूलों की रखवाली करते कांटे। लिखता रहूं वो हर दिन और रात जो गुजर गयी पर हुई ना कुछ खास। कुछ मेरी नादानी और वक़्त का परिहास कुछ टूटे अरमान कुछ उनके एहसास। बस सोचता हूँ की लिखता ही रहूं कुछ कह ना सकूँ बस करता ही रहूं। मेरी कलम बोले हर दिल की आवाज लिखता रहूं मैं सबका अंदाज। बस लिखता रहूं... ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

एक दिन मैं भी फौजी कहलाऊंगा | Ek Din Mai Bhi Fauji Kahelaunga | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

मैं भी फौजी कहलाऊंगा यह उस वर्दी की चमक है, या उन कदमों की धमक है। यह चांद-तारों की बात है, या फिर कंधों के सितारों की चमक है। एक दिन इनको खुद से जोड़ जाऊंगा, एक दिन मैं भी फौजी कहलाऊंगा। वतन की आन-बान-शान के लिए, मैं मौत से भी लड़ जाऊंगा। वो दिन भी मैें देखूंगा, जब दो मां का बेटा कहलाऊंगा। मेरी अंतिम सांसो से सबको एकजुट कर जाऊंगा, एक दिन मैं भी फौजी कहलाऊंगा। वो गाड़ी वो घर, वो फौजियों का शहर ना दिन की कोई चिंता, ना रात की कोई फिकर। सीने पर हिंदुस्तान का मान लिए, हाथों में तिरंगा, देश की शान लिए। मैं हर बार विजय परचम लहराऊंगा, एक दिन मैं भी फौजी कहलाऊंगा। वो एक दिन घर से दूर मेरा जाना होगा, बटुए में छिपा यादों का खजाना होगा। मां की दुआओ का एक प्यारा चमन होगा, मेरे ऊपर तिरंगे का कफ़न होगा। उस दिन सबकी आंखो से मै ओझल हो जाऊंगा, एक दिन मैं भी फौजी कहलाऊंगा। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

वापस आना होता है | By Akhilesh Dwivedi | True and Life Experience | Think Tank Akhil

बहुत दूर निकल जाने से मिलती नहीं खुशियां घर लौटकर वापस आना होता है। उसे प्यार से देखकर कुछ कह ना सकूं धीरे धीरे प्यार जताना होता है। यूं तो लोग दुनिया से जाते हैं अकेला मरने के बाद पीछे जमाना होता है। हर कोई शामिल हो जाता है खुशी में ज़ख्म पर मरहम ना कोई लगाने वाला होता है। इश्क में ताज बनाने की बात करते हैं भूख मिटी कि सब भूल जाना होता है। वो आए थे कि राज करेंगे दुनिया पर भूल गए कि एक दिन सबको जाना होता है। हार और जीत तो बस रस्मे है दुनिया की मकसद तो बस खेल दिखाना होता है। कुछ फूल दिए थे उसने गुलाब के बंद किताबो में उन्हें सूख जाना होता है। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

मै ऐसा इंसान नहीं | Mai Aisa Insaan Nahi | Motivational Poem By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

मै ऐसा इंसान नहीं मंजिल है मेरी सबसे हसीन चाहे रास्ते है कितने कठिन हार मान जाऊंगा ऐसे मैं ऐसा इंसान नहीं। हार जीत तो एक दिखावा है नित सीखना है कुछ सही इसके डर से छोड़ दू सब मैं ऐसा इंसान नहीं। अब खड़ा हूँ बीच रण में मै विजय से दूर नहीं सपनो को मै अधूरा छोड़ दू मैं ऐसा इंसान नहीं। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, Comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

इश्क़ | Ishq | Emotional Poem By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

इश्क़ निरंतर असफलता के बाद भी करना प्रयास इश्क है, किस्मत से भी लड़ जाना किसी के साथ इश्क है। जिस्मों की हो चाहत यह ज़रूरी तो नहीं, किसी की चाह में हद से गुजर जाना भी इश्क है। बेजुबान होकर भी वो करता रहा बेइंतेहा इश्क, प्यार से उसका सीने तक पहुंच जाना भी इश्क है। यह कहां लिखा है कि दो लोग ज़रूरी है इश्क में, मंजिल हासिल करने का हर प्रयास इश्क है। प्रियतम को एक बार देख लेने की बस हो चाहत, उसके रास्ते में बिछाए रखना आंख भी इश्क है। यह सच है की वो सरहद से वापिस नहीं आयेगा, फिर भी करते रहना उसका इंतेजार इश्क है। मोहन का ना होना हमेशा राधा के साथ फिर भी राधा का करते रहना प्यार इश्क है। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

मै क्यों लिखता हूं | Mai Kyu Likhata Hu | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

मै क्यों लिखता हूं? निर्जीव पड़े हैं कितने यहां एक रोशनी की तलाश में, अंधियारे में रात गुजरती उजियारे की आस में। जलती धूप में महल बनाया फरमाते वो जिसमे आराम, गर्म कर रहे अपनी जेबें मजबूरों से करवाते काम। फिर मुझसे कहते हैं कि मै क्यों नहीं चुप रहता हूं? मुस्कुरा सकती थी जो इस जग में उम्मीदों की लिए उड़ान, अंतरिक्ष में जा सकती जो सपना होता जिनका आसमान, जन्म से पहले उन्हें मार दिया कर सकती थी जो ऊंचा नाम। फिर कहते हो तुम मै यह सब क्यों लिखता हूं? अरे! थक गई हैं आंखे मेरी हाथो से दर्द बयां करता हूं, कुछ और नहीं है कहने को बस इसीलिए मै लिखता हूं। बस इसीलिए मै लिखता हूं।। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी संपादक - शालू शर्मा  Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

जो थे कभी अपने अंजान हो गए | Jo The Kabhi Apne Anjaan Ho Gaye | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

जो थे कभी अपने अंजान हो गए बनाया हमने जिनको वो अब भगवान बन गए, दूर से दिख रही थी कुछ रोशनी पास जाकर देखा तो अपने ही मकान जल गए। उन रिश्तों की अहमियत बचाने में रह गए जो थे अपने पर बेगाने ही रह गए, वो आए और घर मेरा ही फूंक दिया आग घर के जिसकी हम बुझाने में रह गए। बड़ा अजीब था वाक़िआ वो हम उसे ही सुलझाने में रह गए, जिस किसी ने दिया दिलासा मुझे वो मेरे ही घर में अपनी भूख मिटाने में रह गए। मैं ढूंढता रहा कोई सच्चा साथी और ढूंढने में जिसे जमाने निकल गए, जब मिला है वो एक अर्से बाद तो कुछ किस्से यार पुराने निकल गए। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

लगता है कि तुम हो | Lagta Hai Ki Tum Ho | Beautiful Thought | Think Tank Akhil

लगता है कि तुम हो  राहत सी जो दे जाए तो लगता है कि तुम हो परछाई कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो। जब बारिश के सुहाने मौसम में कोई बूंद टकराए तो लगता है कि तुम हो। काली तन्हाँ रातें जब सताए चैन कहीं ना आए तो लगता है कि तुम हो। समुंदर की बलखाती लहरों में कोई मोती उतर जाए तो लगता है कि तुम हो। कंकरीले पथरीले चट्टानों में कोई झरना बह जाए तो लगता है कि तुम हो। सुनसान गुजरती अकेली राहों में कोई हाल पूछ जाए तो लगता है कि तुम हो। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला | Har Kisi Ne Mujhe Apne Hisab Se Tola | Think Tank AKhil

हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला जिसे जो मिला हर किसी ने कुछ बोला, मैं अच्छा बुरा समझ ना सका  जिससे जितना हो सका सबने अपना मुँह खोला। खुद को बदलने की कोशिशें मैंने तमाम की वक़्त ने जैसे चाहा उस तरह से बदला, लोग आते रहे, मुझको आजमाते रहे जिसने जैसा चाहा, मैं उस तरह से मिला। सुना है आईना झूठ नहीं बोला करता मुझसे मिलकर उसने भी लोगो में ज़हर घोला, मैं चलता रहा मेरे मुकाम की तरफ कामयाबी से पहले नाकामी ने सर चढ़कर बोला मैं शुक्रगुजार हूँ हर किसी का जिस किसी ने जो किया और जो जो बोला, उनके शब्द मेरे लिए थे सच्चे मैंने खुद को खुद ही उनके लिए बदला। हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

कहते हैं इसे कोठा | Kotha | A Bitter Truth Of Society | Hindi Poetry | Think Tank Akhil

सूरज के ढलते ही लग जाता है बाजार कोई अता हवस मिटाने, कोई करता सच्चा प्यार, जगह बदलते मतलब बदला, अपना कोई ना होता मिटती है यहां भूख हवस की, कहते हैं इसे कोठा। ना होते हैं माँ बाप, ना होता घर परिवार ना कोई किसी की बेटी, ना किसी भाई का प्यार आता जो भी यहाँ पर बस जिस्म का मतलब होता होता है बाजार जिस्म का, कहते हैं इसे कोठा। सब भूख की बात है प्यारे, चाहे पेट हो या हो तन सब हो जाते हैं गायब, जैसे भरता मन मिट जाती अगर भूख जगत की ऐसा कभी ना होता जिन्दा बिकते मुर्दा बनकर, कहते हैं इसे कोठा।  ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

कैसे? | Jo Dikh Raha Use Chhipaye kaise | Emotional Lines | Think Tank Akhil

कैसे? जो दिख रहा है उसे छिपाएं कैसे जमाने की चाहत है जो वो बन जाएं कैसे। महफिल लगाना तो बहुत दूर की बात रही फैसला हो की खुद की आबरू बचाएं कैसे। ना जाने कितने आए तोड़ने हौसले जो कभी भुला नहीं उसे भूल जाएं कैसे। मिट्टी की याद मिटा देना आसान नहीं है अपने शहर को छोड़कर कहीं जाए कैसे। लोग रोते रहे, सबको रुलाते रहे खुश आंखों के आंसू को हम छिपाएं कैसे। हर नज़र को ना अच्छे दिखे हम एक बूंद को समंदर नज़र आए कैसे। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

कहां तक पहुंचें | Hum Teri Chah Me Kahan Tak Pahuche- Amazing Lines | Think Tank Akhil

हम तेरी चाह में ऐ यार! कहां तक पहुंचें, ना है पता ना ठिकाना की कहां तक पहुंचें। कई रास्ते बदले, मोड़ आए कई, ना जाने किस गली किस जगह पहुंचें। लोग आते रहे, लोग जाते रहे अब रास्ते ना जाने कहां तक पहुंचें। मेरी कामयाबियां गिनाती हैं महफिलें मेरी नाकामियां ना जाने कहां तक पहुंची। मंजिलें भी अपनी थीं, रास्ते भी थे अपने मंजिल दे दिखाई बस उस जगह पहुंचें। आंखों में लिए सपने यूं आगे बढ़ा था पूरा हो सके यह जहां बस वहां पहुंचें। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी FOLLOW Friends, If you like the post, Comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

उसकी याद में आंखें नम कर के रोया | Usaki Yaad Me Ankhe Nam Karke Roya- Emotional Poem By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

उसकी याद में आंखें नम कर के रोया अकेले राहों में हर कदम पर रोया, तनहाई अकेले नहीं मिटती कभी कभी वो मिला तो उससे बिछड़ कर रोया। बहार आई कई बार उसके दरवाजे पर कभी ओस तो कभी बारिश बनकर रोया। रोज सोया नहीं मै मखमल के बिस्तर पर कभी पत्थर को मखमल समझकर सोया। वो पल नहीं जब वो याद ना आए उसकी यादों के तकिए से लिपटकर रोया। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, Comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

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