Agar Ab Chaand Nikla To - अगर अब चांद निकला तो | Think Tank Akhil


अगर अब चांद निकला तो
अगर अब चांद निकला तो


अगर अब चांद निकला तो उससे पूछ लेंगे हम
ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने।
संवारा है कभी उसने, निखारा है कभी उसने
ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने।

उसकी झील सी आंखों में डूब जाते हैं हम
समुन्दर की गहराई से तराशा है कहीं उसने।
जो खोले रेशमी जुल्फें तो शाम ढलती है
नई दुनिया में सूरज को पुकारा है कहीं उसने।

नदियों सी बलखाती अदाकारी है उसमे
हिरनी सा चलना सिखाया है कहीं उसने।
अगर अब चांद निकला तो उससे पूछ लेंगे हम
ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने।

                                                       ✍ अखिलेश द्विवेदी


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