अगर अब चांद निकला तो |
अगर अब चांद निकला तो उससे पूछ लेंगे हम
ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने।
संवारा है कभी उसने, निखारा है कभी उसने
ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने।
उसकी झील सी आंखों में डूब जाते हैं हम
समुन्दर की गहराई से तराशा है कहीं उसने।
जो खोले रेशमी जुल्फें तो शाम ढलती है
नई दुनिया में सूरज को पुकारा है कहीं उसने।
नदियों सी बलखाती अदाकारी है उसमे
हिरनी सा चलना सिखाया है कहीं उसने।
अगर अब चांद निकला तो उससे पूछ लेंगे हम
ज़मीं पर क्या कोई टुकड़ा उतारा है कहीं उसने।
✍ अखिलेश द्विवेदी
Bahut badhiya 👍
ReplyDeleteBahut badhiya 👍
ReplyDelete👍
ReplyDeleteGreat brooh👌
ReplyDeleteIt's really nice one
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास
ReplyDelete👌👌👌👌👌
ReplyDeleteNice akkhu 👌👌👌
ReplyDeleteVery nice👍
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