Skip to main content

Socha Tha Ek Ghazal Likhunga | सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा
सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा

सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा
जिसमे साथ तुम्हारे बीता हर पल लिखूंगा।
तुमसे वो पहली मुलाकात की कहानी लिखूंगा
हमारे पहले प्यार की निशानी लिखूंगा।

एक अंजान से शहर में मिलना तुम्हारा लिखूंगा
फिर हमसे यूं बिछड़ जाना हमारा लिखूंगा
वो हर हसीन रात का चमकता सितारा लिखूंगा
यूं ही हंसते हंसते बिखर जाना हमारा लिखूंगा।

हमारी अधूरी कहानी का एक हिस्सा कैसे लिखूंगा
तुम्हारी बदनामी वाला वो किस्सा कैसे लिखूंगा।
तुम्हारी आँखों से बहता वो पानी कैसे लिखूंगा
मेरी वो हर बार हुई नाकामी कैसे लिखूंगा।

पर मैं कोई ऐसी बात नहीं लिखूंगा
हो बदनामी प्यार की वो अल्फ़ाज़ नहीं लिखूंगा।
जो बीत गया कल वो आज नहीं लिखूंगा
जो रह गया हमारे बीच वो राज नहीं लिखूंगा।

सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा
प्यार की चहल पहल लिखूंगा।
ना जाने क्यू मेरे हाथ काँपने लगे
अब और नहीं होगा कभी और यह गम लिखूंगा।

✍️ -अखिलेश द्विवेदी


Friends, If you like the post, comment below and share your response. Thanks for reading 😃

Comments

Post a Comment

Visitors

Popular posts from this blog

हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला | Har Kisi Ne Mujhe Apne Hisab Se Tola | Think Tank AKhil

हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला जिसे जो मिला हर किसी ने कुछ बोला, मैं अच्छा बुरा समझ ना सका  जिससे जितना हो सका सबने अपना मुँह खोला। खुद को बदलने की कोशिशें मैंने तमाम की वक़्त ने जैसे चाहा उस तरह से बदला, लोग आते रहे, मुझको आजमाते रहे जिसने जैसा चाहा, मैं उस तरह से मिला। सुना है आईना झूठ नहीं बोला करता मुझसे मिलकर उसने भी लोगो में ज़हर घोला, मैं चलता रहा मेरे मुकाम की तरफ कामयाबी से पहले नाकामी ने सर चढ़कर बोला मैं शुक्रगुजार हूँ हर किसी का जिस किसी ने जो किया और जो जो बोला, उनके शब्द मेरे लिए थे सच्चे मैंने खुद को खुद ही उनके लिए बदला। हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

चैन से सोना चाहता हूं- Chain se Sona Chahta hoon | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

सोना चाहता हूं यह दरवाज़े पर कोई पहरा लगा दो  खुद में खोना चाहता हूं मैं। बंद कर दो सारी खिड़कियां मेरे घर की की अब मैं चैन से सोना चाहता हूं। उसकी ज़रूरत मुझे अभी बहुत है अब उससे दूर होना चाहता हूं। अब कोई दिया रोशन ना करना अंधेरे में खोना चाहता हूं मैं। कुछ नए गम दे जा इन सूखी आंखों को मैं फिर से पलकें भिगोना चाहता हूं। था जिस पतवार का सहारा उसे तोड़ दिया अब यह दरिया सुखाना चाहता हूं। ✍  अखिलेश द्विवेदी Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃