सोना चाहता हूं |
यह दरवाज़े पर कोई पहरा लगा दो
खुद में खोना चाहता हूं मैं।
बंद कर दो सारी खिड़कियां मेरे घर की
की अब मैं चैन से सोना चाहता हूं।
उसकी ज़रूरत मुझे अभी बहुत है
अब उससे दूर होना चाहता हूं।
अब कोई दिया रोशन ना करना
अंधेरे में खोना चाहता हूं मैं।
कुछ नए गम दे जा इन सूखी आंखों को
मैं फिर से पलकें भिगोना चाहता हूं।
था जिस पतवार का सहारा उसे तोड़ दिया
अब यह दरिया सुखाना चाहता हूं।
✍ अखिलेश द्विवेदी
👍👍
ReplyDeleteKeep going dude! ��
ReplyDeleteNice bro
ReplyDeleteNice one akhil...I just loved it.......u just killed it......
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