कैसे?
जो दिख रहा है उसे छिपाएं कैसे
जमाने की चाहत है जो वो बन जाएं कैसे।
महफिल लगाना तो बहुत दूर की बात रही
फैसला हो की खुद की आबरू बचाएं कैसे।
ना जाने कितने आए तोड़ने हौसले
जो कभी भुला नहीं उसे भूल जाएं कैसे।
मिट्टी की याद मिटा देना आसान नहीं है
अपने शहर को छोड़कर कहीं जाए कैसे।
लोग रोते रहे, सबको रुलाते रहे
खुश आंखों के आंसू को हम छिपाएं कैसे।
हर नज़र को ना अच्छे दिखे हम
एक बूंद को समंदर नज़र आए कैसे।
✍️ -अखिलेश द्विवेदी
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Nice lines
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