मै क्यों लिखता हूं?
निर्जीव पड़े हैं कितने यहां
एक रोशनी की तलाश में,
अंधियारे में रात गुजरती
उजियारे की आस में।
जलती धूप में महल बनाया
फरमाते वो जिसमे आराम,
गर्म कर रहे अपनी जेबें
मजबूरों से करवाते काम।
फिर मुझसे कहते हैं कि मै क्यों नहीं चुप रहता हूं?
मुस्कुरा सकती थी जो इस जग में
उम्मीदों की लिए उड़ान,
अंतरिक्ष में जा सकती जो
सपना होता जिनका आसमान,
जन्म से पहले उन्हें मार दिया
कर सकती थी जो ऊंचा नाम।
फिर कहते हो तुम मै यह सब क्यों लिखता हूं?
अरे! थक गई हैं आंखे मेरी
हाथो से दर्द बयां करता हूं,
कुछ और नहीं है कहने को
बस इसीलिए मै लिखता हूं।
बस इसीलिए मै लिखता हूं।।
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