जो थे कभी अपने अंजान हो गए | Jo The Kabhi Apne Anjaan Ho Gaye | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil
जो थे कभी अपने अंजान हो गए
बनाया हमने जिनको वो अब भगवान बन गए,
दूर से दिख रही थी कुछ रोशनी
पास जाकर देखा तो अपने ही मकान जल गए।
उन रिश्तों की अहमियत बचाने में रह गए
जो थे अपने पर बेगाने ही रह गए,
वो आए और घर मेरा ही फूंक दिया
आग घर के जिसकी हम बुझाने में रह गए।
बड़ा अजीब था वाक़िआ वो
हम उसे ही सुलझाने में रह गए,
जिस किसी ने दिया दिलासा मुझे
वो मेरे ही घर में अपनी भूख मिटाने में रह गए।
मैं ढूंढता रहा कोई सच्चा साथी
और ढूंढने में जिसे जमाने निकल गए,
जब मिला है वो एक अर्से बाद
तो कुछ किस्से यार पुराने निकल गए।
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