ना है पता ना ठिकाना की कहां तक पहुंचें।
कई रास्ते बदले, मोड़ आए कई,
ना जाने किस गली किस जगह पहुंचें।
लोग आते रहे, लोग जाते रहे
अब रास्ते ना जाने कहां तक पहुंचें।
मेरी कामयाबियां गिनाती हैं महफिलें
मेरी नाकामियां ना जाने कहां तक पहुंची।
मंजिलें भी अपनी थीं, रास्ते भी थे अपने
मंजिल दे दिखाई बस उस जगह पहुंचें।
आंखों में लिए सपने यूं आगे बढ़ा था
पूरा हो सके यह जहां बस वहां पहुंचें।
✍️ -अखिलेश द्विवेदी
Friends,
If you like the post, Comment below and do share your response. Thanks for reading 😃
Comments
Post a Comment