यह शहर है अनजानों का, नए हैं सब यहां
गुजार सकूं कुछ दिन तो जान पहचान ज़रूरी है।
कहां घूमते हैं गलियों में आवारा
इस शहर में अपना एक मकान ज़रूरी है।
उन्हें इश्क़ हो किसी से भला यह मुनासिब कहां है
हर गली में हो उसका कद्रदान ज़रूरी है।
कहां जाओगे जब निकलोगे घर से बाहर
मंज़िल मिले जहां ऐसा स्थान ज़रूरी है।
ना जाने किस भीड़ में वो खो गई अमानत मेरी
बची इंसानियत हो जिसमें वो इंसान ज़रूरी है।
जाति, धर्म और भाषाओं में बांट दिया है फायदे के लिए
हमारे लिए तो बस भारत की शान ज़रूरी है।
Nice
ReplyDeleteThank You
DeleteNice 👍
ReplyDeleteबहुत खूब!💙
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