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यादगार पल ज़िन्दगी के |
याद आती हैं वो सुनी रातें
जब बंद कमरे में न जाने कब सो जाता था
न जाने कब सुबह की धूप और अँधेरा हो जाता था
याद अता है वो दिन जब सिर्फ इसलिए मेरे कमरे का दरवाज खटखटाया जाता था
आज कितनी देर हुई अखिल अब तो उठ जाओ
याद आती हैं वो सुनी रातें। ....
जब कभी मेरे कुकर की आवाज देर तक नहीं आती थी
खाना यही बना है आज की आवाज छत से आती थी
याद आती है वो माँ के हाथो की मिठास
ना जाने क्यों वो देर देर तक करते रहना बातें
याद आती हैं वो सुनी रातें। ....
याद आती है मुझे हर वो सुनी रात
जिस दिन वो रहती थी मुझसे नाराज
सोना दूभर सा हो जाता था
टूटा दूर दूर तक रहता निंदो से नाता था
फिर अगली सुबह उसकी वो मिठी बातें
याद आती हैं वो सुनी रातें। .....
वक़्त से पहले बैट लेकर घर में ही खेलना
न जाने कब मैदान में निकल जाना
देर तक खेलना बेवजह
और थक कर सो जाना।
वो बड़ी बहन का प्यार
एक छोटे भाई को राह दिखाने का एहसास
फिर उनके साथ बिताये हुए वो लम्हे
जो न थे सपने पर लगते थे अपने
याद आती हैं वो सुनी रातें। ....
फिर न जाने कब एक तूफान सा टकराया
मेरी हसती हुई कश्ती को दुखो के दरिया में मोड़ लाया
न जाने क्या हुआ था उन चाँद लम्हो में
एक झटके में पराया कर दिया उन अपनों ने.
याद आती हैं वो सुनी रातें। ....
नाकामयाबी पर अपनी, बड़े विश्वास से लड़ा
बड़ी हिम्मत लेकर मैं आगे बढ़ा
उनके हर आशीर्वाद को निशाने पर साधे बढ़ा
हर कामयाबी में उनको अपने साथ पाते बढ़ा
दूर हूँ एक आरसे से उनसे फिर भी हैं वो याद आते
याद आती हैं वो सुनी रातें। .....
ऊँचाइयाँ मिली तो उनका भी नाम होगा
उन्हें भी मेरे होने का गुमान होगा
जो चंद लम्हे एक साथ जिया
वो छोटी सी दुनिया जिसने दुनिया भर की खुशिया दिया।।
याद आती हैं वो सुनी रातें जब बंद कमरे में न जाने कब सो जाता था।
Nic
ReplyDeleteThanks & Regards
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