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माँ पिता के साथ रहकर मैंने कितना कुछ सीख लिया |
पहले चलना भी नहीं था आता
आज दौड़ भी जीत जाता हूँ।
लिखना तो नामुमकिन था
आज ना जाने कितना लिख जाता हूँ।
पुरा नहीं कर सकता इसको छोटा सा शुक्रिया
माँ पिता के साथ रहकर मैंने कितना कुछ सीख लिया।
आज जो बातें बताता है यह जमाना
उनके साथ रहकर मैंने यह बरसों पहले था जाना।
जिन बातों को मैंने तब नज़रंदाज किया
आज हर मोड़ पर उन बातों ने ही मेरा बहुत साथ दिया।
कर भी नहीं सकता मैं उनका शुक्रिया
माँ पिता के साथ रहकर मैंने कितना कुछ सीख लिया।
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