💮 मेरी डायरी 💮
पूछा एक दिन बंद पड़ी डायरी के पन्नो ने
क्या दूर चला गया इनमे रहने वाला।
उठा ली कलम लिखने को तुम्हारी यादें
पर यादों के समुन्दर में खोया नहीं गया।।
वो पड़ी थी बंद दराजों पर करते हुए इंतज़ार
सोचती थी कभी तो आएगा उसका यार।
हर वक़्त उसकी रुस्वाइयों को देखकर
उसे लगने लगा अब बेगाना हो गया उसका प्यार।।
अचानक एक आँधी सी आयी
उसकी सारी खुशियाँ मानो मोड़ सी लायी।
पहले पन्ने पर ही लिखा था उसका प्यार
वादा रहा लौटकर आऊंगा मेरे यार।।
खिलखिला उठी डायरी उन हवा के झोको में
जैसे मिल गया हो कोई उन दरख्तों में।
आज उसकी खिलखिलाहट भी मुझे भा गयी
उस आंधी के साथ डायरी में बहार सी छा गयी।।
मैं खुश था उसकी यादों को देखकर
शायद वो भी खुश हो कुछ ऐसा ही सोचकर।
वो जाने कब तक करती रहेगी इंतज़ार
कभी तो आएगा ही लौटकर उसका यार।।
उस बंद डायरी की मायूशियाँ मुझसे ना देखी गयी
सारी बातें उसकी रात भर चुभती रही।
उठा लिया डायरी लिखने को उसकी यादें
पर वो दिल से डायरी में न सहेजी गयी।।
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