एक लम्बे अर्शे का हमारा साथ रहा
हर सुबह सूरज उसकी बातों के साथ उगा
वो हँसती हुई गुड मॉर्निंग की आवाज
जब कहती थी वो मिलना है फिर से वहीं आज
एक लम्बा वक़्त था जो हमने ऐसे ही गुजरा
सब जानते हुए भी वो ना करती थी किनारा।
वो हर सुबह मुझे कॉल करके जगाना
फिर जगते ही गुड बॉय से सराहना
बड़ी जिम्मेदारी से यह हर रोज निभाना
उसको होता था पता की जगा हूँ मैं
फिर भी मुझे अपनी प्यारी सी मुस्क़ुराहट सुनाना
वो लम्बा वक़्त जब हम बस देखते और मुस्कुराते
जब भी मिलते खुशियों का हशीन तोहफ़ा दे जाते।
सब कुछ ठीक था हमारे दरमियाँ
अचानक सागर ने किनारे की तरफ मोड़ दी थी किश्तियाँ
वो दिन भी आया जब थी उसकी सगाई
न जाने कैसे रात 12 उसकी कॉल आई
मजाक में ही मैंने उसको आंटी बुलाया
आंटी किसको बोला यह जवाब भी पाया
वो आखिरी लम्हाँ था जब मैं उसके साथ था मुस्कुराया।
वो बोली मुझे माफ़ करना
मम्मी पापा के लिए है यह करना
दिल रुआंसा, फिर भी कहा गर्व है मुझे
तुम साथ दो उनका यह हक़ है उन्हें।
अचानक कमरे में संन्नाटा छा गया
सिसकियों की लहर में पूरा कमरा आ गया
उसको रोकना चाहा पर रोक ना सका
उसको देखा था हर बार मुश्कुराते,
आज रोते हुए भी देख लूँ उसको थी ख्वाहिश,
पर देख न सका।
यूँ ही चलता रहा यह सिलसिला उस रात
फिर वो वक़्त भी आ गया जब खत्म करनी थी हमें अपनी बात
पहली बार लगा उससे कुछ कहना था, जो कहा न गया
शायद यही सोचकर उस रात बिना बात किये रहा नहीं गया
फिर वो धीरे से बोली माफ़ करना बस इसलिए
दिल जोर से धड़का और पूछा किसलिए?
अब वो सुबह गुड मॉर्निंग की कॉल नहीं आएगी
मानो ज़मीन खींच ली किसीने पैरों तले से,
यह सोचकर की अब वो प्यारी सी मुस्कराहट नहीं सुनाएगी।
दिल थाम कर बस हाँ का जवाब दिया
बालकनी में निकला तो सूरज ने भी साथ दिया
वो थी मेरी आखिरी सुबह जब मैं आखिरी बार उसकी बातों के साथ जगा
और आहिस्ता-आहिस्ता सफर ज़िन्दगी का उसके बिना आगे बढ़ा
ऐसी ही थी कुछ यारों मेरी कहानी
ऐसा ही मेरा आखिरी एहसास रहा।
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