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यूं तो रोज होता था मिलना हमारा
पर वो मुलाकात कुछ खास थी।
जब बैठी थी वो सामने मेरे,
आंखों में देखते रहने की प्यास थी।
मंदिर की शंख की धुन था मैं,
वो मस्जिद की उठती अजान थी।
मै पंडित जनेऊ धारी था
वो एक बुरखे वाली नारी थी।
मै मंदिर जाता कभी कभी,
वो दिन में ५ नमाज़ी थी।
मिन्नतें भगवान की करता था मैं,
वो खुद मंदिर की एक मूरत थी।
मै ढूंढता रहता था जिसको,
वो एक सुन्दर सी सूरत थी।
मै गीता का एक हिस्सा था,
वो पूरा पवित्र क़ुरान थी।
Nice bhai
ReplyDeleteThank You
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