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एक सपना
एक रात तुम सपने में आये थे।
किसी बात से नाराज़ लग रहे थे।
लगा कुछ रिश्ते तुमने ख़ास रखे थे।
अपने एहसासों के कुछ सवाल रखे थे।
मेरे ही आगे मेरे कामों के हिसाब रखे थे।
शायद मैं समझ ना सका।
शायद यह वही काम थे जिन्हे तुम्हारे लाख मना करने पर भी मैंने किया। शायद यह वही काम थे जिन्हे तुम अक्सर मुझसे दूर रखने को कहा करती थी। शायद यह वही काम थे जिन्हे मैंने तुमसे ज्यादा वरीयता में रखा। शायद यह वही लोग हैं जिन्हे मैंने तुमसे आगे रखा।
अरे हाँ, यह वही गलतियां है जो होने से बचाई जा सकती थी लेकिन मैने तुम्हारी एक ना सुनी। काश!! मैं उस वक़्त तुम्हारी बातें मान लेता। काश!! उस दिन तुम्हारे साथ वो एक छोटा सा रास्ता पैदल चल लेता। काश!! मैं तुम्हारी बातें उस वक़्त मान लेता, तो आज शायद! शायद नहीं यक़ीनन तुम मेरे साथ होती, और मैं उन बातों को याद करके हँसता। काश!! मैं मोड़ पाता वो पल जब तुमने अलविदा कहा था। शायद! शायद नहीं पूरा भरोसा है मुझे, मैं तुम्हे जाने से रोक लेता। लेकिन अब तुम बहुत दूर जा चुकी हो।
अब चली गयी तो कोई शिकवा नहीं, कोई शिकायत नहीं। बस दुआ करूँगा तुम खुश रहो। तुम्हे कभी किसी की ज़रूरत ना पड़े, और अगर पड़े तो मुझे ज़रूर याद करना। शायद तब तुम्हारी कोई बात मान लूँ मैं।
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