Skip to main content

Love Story- देर हो जाती कैसे- Emotional- Hindi Love Story- Think Tank Akhil

Love Story- देर हो जाती कैसे- Emotional- Hindi Love Story- Think Tank Akhil

यह सिर्फ कहानी ही नहीं बल्कि दो दिलों की दास्तान है। जिसमे चाहते तो दोनों थे एक दूसरे को लेकिन किसी बात का डर हमेशा रहता।

उसकी बड़ी बड़ी ऑंखें और उसके रेशमी बाल अक्सर जो उसके चेहरे पर आ जाते थे उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा जाते। वो अक्सर कहती थी तुम बड़े अट्रैक्टिव हो पता नहीं क्यों बस तुम्हारे साथ रहने को दिल चाहता है।

अक्सर वो दूरियां  बनाये रखती थी लेकिन जब मुझे पता था की उसे मेरे साथ रहना अच्छा लगता है तो मुझे दूरियाँ मिटाने  में देर नहीं लगती। अक्सर कुछ बाते हो जाती जिससे वो साथ आ ही जाती थी। अनजान थे एक दूसरे से बिल्कुल वैसे ही जैसे दो मुसाफिर मिलते हैं  किसी मोड़ पर, लेकिन सदियों साथ चलना जो था तो  जान पहचाहन  बनाने  में देर हो जाती कैसे। हम  कुछ ही महीने साथ थे एक दूसरे के लेकिन तब तक कुछ खास जगह तो बना ली थी हमने एक दूसरे के दिलो में, उसे हमराही बनाने में देर हो जाती कैसे।अक्सर कुछ न कुछ चर्चे हुआ करते थे हमारे बारे में और वो अक्सर मुझसे छिपाती थी की कहीं मैं लोगो को कुछ कह न दूं। अब दिल का नाता जो था तो मैं उसे देखकर जान लेता था की कुछ तो हुआ है, भला अब धड़कनो से पूछने में देर हो जाती कैसे। यह निश्चित था की हमें साथ रहना है कुछ महीने अब पास आने में देर हो जाती कैसे। जब भी उसे आस पास देखता बहुत अच्छा लगता, सोचता की काश हम साथ रहे। अब सोचकर भी उसे अपना बनाने में देर हो जाती कैसे। 



अक्सर हमरे बीच कुछ नोंकझोक हो जाती थी वो रूठती थी मैं  मना लेता था। हम जानते थे की हमे ज्यादा दिन साथ नहीं रहना है तो मुझे उसे मनाने में देर हो जाती कैसे। जब भी घर से निकलते हम ऐसा लगता मनो यह बादल भी मेहरबान हो गया हो, और मौसम सुहाना हो जाने में देर हो जाती कैसे। देखा था उसे सार्द रातो में ठिठुरते हुए, गर्म बांहो की चादर उढाने में देर  हो जाती कैसे। अक्सर देखा था मौसम बदलते हुए अपने वक़्त पर, भला अब ऐसा होने में देर हो जाती कैसे। अक्सर कुछ गलतियां हो जाती थी हमसे, अब भला उन गलतियों को सही करने में देर हो जाती कैसे। हर लड़के की तरह मैंने भी कुछ सपने देखे की उम्र भर साथ रहेंगे अब भला उसे हमसफर बनाने में देर हो जाती कैसे। न जाने क्यों वो अक्सर दूर रहना चाहती थी, अब उसकी इकलौती ख्व्वाहिस भी न पूरी करु तो मोहब्बत कैसी। तो ख्वाहिशें पूरी करने में देर हो जाती कैसे। बहुत खुश दिखी वो किसी और की होकर, अब उसकी खुशियों के रास्ते से दूर हो जाने में मुझे देर हो जाती कैसे। अक्सर वो देर से आया करती थी वजह कभी वो खुद तो कभी अपनी सहेलियां होतीं।

आज जब मैं  उसके शहर को अलविदा कह रहा हूँ, तो उसे वक़्त पर आने में देर हो जाती कैसे।

✍️ -अखिलेश द्विवेदी

Follow


Friends, If you like the post, Comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

Comments

Visitors

Popular posts from this blog

हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला | Har Kisi Ne Mujhe Apne Hisab Se Tola | Think Tank AKhil

हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला जिसे जो मिला हर किसी ने कुछ बोला, मैं अच्छा बुरा समझ ना सका  जिससे जितना हो सका सबने अपना मुँह खोला। खुद को बदलने की कोशिशें मैंने तमाम की वक़्त ने जैसे चाहा उस तरह से बदला, लोग आते रहे, मुझको आजमाते रहे जिसने जैसा चाहा, मैं उस तरह से मिला। सुना है आईना झूठ नहीं बोला करता मुझसे मिलकर उसने भी लोगो में ज़हर घोला, मैं चलता रहा मेरे मुकाम की तरफ कामयाबी से पहले नाकामी ने सर चढ़कर बोला मैं शुक्रगुजार हूँ हर किसी का जिस किसी ने जो किया और जो जो बोला, उनके शब्द मेरे लिए थे सच्चे मैंने खुद को खुद ही उनके लिए बदला। हर किसी ने मुझे अपने हिसाब से तोला। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃

Socha Tha Ek Ghazal Likhunga | सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा जिसमे साथ तुम्हारे बीता हर पल लिखूंगा। तुमसे वो पहली मुलाकात की कहानी लिखूंगा हमारे पहले प्यार की निशानी लिखूंगा। एक अंजान से शहर में मिलना तुम्हारा लिखूंगा फिर हमसे यूं बिछड़ जाना हमारा लिखूंगा । वो हर हसीन रात का चमकता सितारा लिखूंगा यूं ही हंसते हंसते बिखर जाना हमारा लिखूंगा। हमारी अधूरी कहानी का एक हिस्सा कैसे लिखूंगा तुम्हारी बदनामी वाला वो किस्सा कैसे लिखूंगा। तुम्हारी आँखों से बहता वो पानी कैसे लिखूंगा मेरी वो हर बार हुई नाकामी कैसे लिखूंगा। पर मैं कोई ऐसी बात नहीं लिखूंगा हो बदनामी प्यार की वो अल्फ़ाज़ नहीं लिखूंगा। जो बीत गया कल वो आज नहीं लिखूंगा जो रह गया हमारे बीच वो राज नहीं लिखूंगा। सोचा था एक ग़ज़ल लिखूंगा प्यार की चहल पहल लिखूंगा। ना जाने क्यू मेरे हाथ काँपने लगे अब और नहीं होगा कभी और यह गम लिखूंगा। ✍️ -अखिलेश द्विवेदी Follow Friends, If you like the post, comment below and share your response. Thanks for reading 😃

चैन से सोना चाहता हूं- Chain se Sona Chahta hoon | By Akhilesh Dwivedi | Think Tank Akhil

सोना चाहता हूं यह दरवाज़े पर कोई पहरा लगा दो  खुद में खोना चाहता हूं मैं। बंद कर दो सारी खिड़कियां मेरे घर की की अब मैं चैन से सोना चाहता हूं। उसकी ज़रूरत मुझे अभी बहुत है अब उससे दूर होना चाहता हूं। अब कोई दिया रोशन ना करना अंधेरे में खोना चाहता हूं मैं। कुछ नए गम दे जा इन सूखी आंखों को मैं फिर से पलकें भिगोना चाहता हूं। था जिस पतवार का सहारा उसे तोड़ दिया अब यह दरिया सुखाना चाहता हूं। ✍  अखिलेश द्विवेदी Friends, If you like the post, comment below and do share your response. Thanks for reading 😃