वो सर्द नवंबर की रात मुझे आज भी याद है।
वो रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार मुझे आज भी याद है।
सिलसिला शुरु हुआ था गर्मियों में मगर अब आग लगने से भड़कने के लिए वक़्त तो लगता है। नवंबर में ही मेरा बर्थडे आता है, और उसके ठीक २-३ दिन पहले उसे कहीं जाना पड़ा। मन था जाने का या जाना मज़बूरी थी कुछ कह नहीं सकता था। वो शाम मुझे आज भी याद है जब वो जाने से पहले मिलने आई थी। बर्थडे की शुभकामनाये देते हुए बोली, “बर्थडे पार्टी में मैं तो नहीं रहूँगी, तुम मस्ती करना।”
किश्मत देखो, दिल्ली में कुछ ८-९ स्टेशन हैं लेकिन उसकी ट्रेन भी वही से थी जहाँ मुझे मेरे अंकल को छोड़ने जाना था और दोनों की ट्रेन लेट थी। मुझे बड़ा भरोसा है मेरी आँखों पर की यह बहुत तेज़ हैं। अचानक वो मुझे दिख गयी। अपने भी एहसासो का तूफ़ान उमड़ गया। उसके साथ वाली सीट खाली करवाकर आंटी जी को बिठाया और फिर फ़िराक़ में लग गया की वो एक बार देख ले मुझे। बहुत असफल प्रयास किये, उसके सामने थोड़ी दूर पर खड़ा हो गया और वो ईयरफ़ोन लगाए गाने सुनने में या फिर अपनी बहन से बाते करने में व्यस्त थी।
जब वो एक महीने बाद आई तब पता चला की वो मेरी ही बाते कर रही थी, मुझे ही याद कर ही थी। उसे लग रहा था की मै आस -पास हूँ उसके। और अचानक उसने मुझे देख लिया, मानो उसकी आँखेँ मुझ पर आकर रूक सी गयी हो। हमने एक दूसरे को देखा मुस्कुराये और इशारों में बातें हुई, ना उसे मैं बता सकता हूँ और ना कोई और समझ सकता है।
अब शायद मेरे जाने का वक़्त आ गया था ट्रेन आ गयी थी और मैं अपना सामान लेकर आगे बढ़ गया। अंकल अन्टी को उनकी सीट पर बिठाकर वापिस आते टाइम सोचा की एक बार उसे फिर से देख लेता हूँ, उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा, उसकी चश्मे के पीछे छिपी आँखे एक बार फिर देखता चलूँ। वो मेरे ही रस्ते की तरफ देख रही थी। वही रुक जाने का मन था और उसे देखते रहने का जब तक ट्रेन चली न जाये लेकिन घड़ी रात के ११:३० बजा रही थी और फिर नवंबर की सर्दी, घर वापिस आना था। इशारों-इशारों में अलविदा किया और चला आया।
एक महीना बीत गया और वापिस आई। तब दिल की बाते पता चली। कितनी याद आई मेरी, भीड़ में भी कई बार मेरा ख्याल आया। स्टेशन पर अपने घर वालो से छिपकर मुझसे मिलने का भी ख्याल आया उसके मन में लेकिन मेरा फ़ोन नंबर नहीं था उसके पास। बहुत पछताई उस दिन की काश! नंबर ले लेती। काश! एक बार २ मिनट के लिए ही सही मिल लेती और कह देती की मेरे मन में तुम्हारे ही ख्याल चल रहें हैं, कितना तूम्हे याद कर रही थी। खैर अब सामने हूँ अब कह देती हूँ। उसने पूरे महीने का हाल बताया कितना खुश थी वहाँ क्या क्या मस्ती की वहाँ लेकिन जब भी मौका मिलता तुम्हरी फेसबुक प्रोफाइल देख लेती की बर्थडे की फोटो ज़रूर लगाओगे।
फिर यह नवम्बर आ गया है सिर्फ इतना बदला है इस एक साल में हम मिले भी और बहुत दूर भी हो गए। वक़्त ने मिलाया भी और दूर भी कर दिया।
वो नवंबर भी कुछ खास रहा,
जिसे चाहा वो मेरे पास रहा।
यह नवंबर भी कुछ खास है,
जो चाहा बस उसके एहसास है।
✍️ -अखिलेश द्विवेदी
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